INDC Network : पाकिस्तान : पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में अचानक आई भीषण बाढ़ और भूस्खलन ने भारी तबाही मचा दी है। अब तक 307 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है और यह आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रभावित इलाकों में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत सबसे ज्यादा प्रभावित है, जहां सैकड़ों घर बह गए और दर्जनों गांव तबाह हो गए।
खैबर पख्तूनख्वा में सबसे ज्यादा तबाही
आपदा प्रबंधन अधिकारियों के अनुसार, अकेले खैबर पख्तूनख्वा में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। भारी बारिश के कारण कई पहाड़ियां खिसक गईं और नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ गया। यहां राहत कार्य में लगे एक एम-17 हेलिकॉप्टर भी खराब मौसम के चलते दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें सवार पांच क्रू सदस्य मारे गए।
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान की स्थिति
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (पीओके) में 9 लोगों की मौत हुई है, जबकि गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में भी 5 लोगों की जान गई है। स्थानीय प्रशासन ने कई इलाकों को आपदा प्रभावित घोषित किया है। लगातार बारिश और भूस्खलन के चलते सड़कें अवरुद्ध हो गई हैं, जिससे राहत और बचाव कार्यों में बाधा आ रही है।
स्थानीय लोगों का डरावना अनुभव
बुनर इलाके के निवासी अज़ीज़ुल्लाह ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि बाढ़ इतनी तेजी से आई कि ऐसा लगा मानो कयामत आ गई हो। उन्होंने कहा—
“मैंने तेज धमाका सुना जैसे पहाड़ टूट रहा हो। पूरा इलाका हिलने लगा और लगा कि दुनिया खत्म हो रही है। जमीन कांप रही थी और पानी का तेज बहाव मौत की तरह सामने खड़ा था।”
शोक और जनाजे का माहौल
बजौर इलाके में लोग खुदाई मशीनों से मलबा हटाकर शव निकाल रहे हैं। पास ही खुले मैदान में जनाजे की नमाज पढ़ी गई, जहां कई शव कंबलों से ढंके हुए पड़े थे। इस घटना के बाद खैबर पख्तूनख्वा की सरकार ने एक दिन का राजकीय शोक घोषित किया है।
भारतीय कश्मीर भी प्रभावित
पाकिस्तान के साथ-साथ भारतीय प्रशासित कश्मीर में भी बाढ़ और भूस्खलन ने कहर ढाया है। शुक्रवार को एक हिमालयी गांव में बाढ़ घुस गई, जिससे कम से कम 60 लोग मारे गए और कई लापता हो गए। रेस्क्यू टीम लगातार मलबे में दबे लोगों को बाहर निकालने का प्रयास कर रही है।
जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों का खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की आपदाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन एक बड़ी वजह है। उत्तरी पाकिस्तान दुनिया के सबसे ज्यादा ग्लेशियरों वाले क्षेत्रों में गिना जाता है, लेकिन ग्लेशियर तेजी से पिघल और सिकुड़ रहे हैं। इसके कारण ढलानों पर मिट्टी, चट्टानें और मलबा अस्थिर हो गया है। जब मूसलाधार बारिश होती है तो यह सामग्री आसानी से बह जाती है और भूस्खलन का रूप ले लेती है।
इस साल जून से सितंबर के बीच होने वाले मानसून ने पहले ही पाकिस्तान को तबाह कर दिया है। सिर्फ जुलाई में पंजाब प्रांत में सामान्य से 73% अधिक बारिश दर्ज की गई। वहां मौतों का आंकड़ा पिछले साल के पूरे मानसून सीजन से भी ज्यादा हो गया।
भविष्य की चुनौती
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर ग्लेशियर पिघलने की गति और मानसून का यह रुख जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में पाकिस्तान और कश्मीर में ऐसी आपदाएं और भी गंभीर रूप ले सकती हैं। अभी राहत और पुनर्वास कार्य जारी है, लेकिन प्रभावित परिवारों को फिर से सामान्य जीवन में लौटने में लंबा समय लग सकता है।



















