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बदायूं में तालाब से निकली चारमुखी मूर्ति विवादों में, बौद्ध अनुयायियों ने बुद्ध की प्रतिमा, हिन्दुओं ने शिवलिंग बताया

INDC Network : बदायूँ, उत्तर प्रदेश : बदायूं जिले के दातागंज तहसील अंतर्गत ग्राम सराय पिपरिया में एक अद्भुत मूर्ति की खुदाई के बाद धार्मिक विवाद खड़ा हो गया है। पंचतत्व पौधशाला परियोजना के अंतर्गत एक तालाब की खुदाई के दौरान लगभग 6 फीट नीचे से एक चारमुखी संगमरमर की मूर्ति निकली, जिसे स्थानीय हिंदू संतों ने चतुर्मुखी शिवलिंग बताते हुए पूजा शुरू कर दी। वहीं बौद्ध समुदाय का कहना है कि यह मूर्ति तथागत गौतम बुद्ध की प्राचीन प्रतिमा है।

यह मूर्ति सफेद संगमरमर से बनी हुई है और इसके ऊपर चार मुख स्पष्ट रूप से उकेरे गए हैं। ग्रामीणों द्वारा पहले इसे शिवलिंग मानकर पूजा की जा रही थी, लेकिन अब बौद्ध अनुयायियों का दावा है कि यह कोई शिवलिंग नहीं बल्कि भगवान बुद्ध की मूर्ति है। उनका कहना है कि अतीत में भी कई बुद्ध मूर्तियों को तोड़कर शिवलिंग या अन्य हिंदू प्रतीकों का रूप दे दिया गया है।

बौद्ध अनुयायियों का दावा:
बौद्ध समाज से जुड़े कई लोगों और संगठनों ने इस मूर्ति को ‘बुद्धवोटिका’ या बुद्ध स्तूप का हिस्सा बताया है। उनका कहना है कि:

  1. यह मूर्ति भगवान बुद्ध की है, जिसे शिवलिंग कहकर भ्रम फैलाया जा रहा है।
  2. मूर्ति के चारों मुख तथागत बुद्ध की शांति मुद्रा को दर्शाते हैं।
  3. यह मूर्ति किसी प्राचीन बौद्ध स्थल का हिस्सा रही होगी।
  4. सरकार और पुरातत्व विभाग से इसकी जांच कराने और संरक्षण की मांग की गई है।
  5. यह क्षेत्र किसी समय बौद्धिक विरासत से जुड़ा रहा हो सकता है, जिसके अवशेष अब सामने आ रहे हैं।

हिंदू पक्ष का दावा:
तालाब की खुदाई शिप्रा पाठक द्वारा संचालित पौधशाला परियोजना के तहत की जा रही थी। खुदाई के दौरान प्रतिमा मिलने पर शिप्रा पाठक समेत कई संत वहां पहुंचे और इसे चतुर्मुखी शिवलिंग बताते हुए पूजा शुरू कर दी। उन्होंने मंदिर निर्माण की भी घोषणा कर दी है।

इस अवसर पर कई संत जैसे स्वामी मधुसूदनाचार्य, महामंडलेश्वर स्वामी अमृतदास, खाकी महाराज आदि मौजूद रहे। यह दावा किया गया कि मूर्ति 300 साल पुरानी है और इसे मां नर्मदा से जोड़ते हुए चमत्कारी माना जा रहा है।

विवाद और मांगें:
मूर्ति को लेकर दोनों समुदायों में मतभेद गहराते जा रहे हैं। बौद्ध समुदाय का कहना है कि मूर्ति पर बौद्ध लक्षण स्पष्ट हैं और यह तथागत बुद्ध का स्वरूप है। उनका यह भी कहना है कि 2027 के चुनाव में बुद्धवंशज होने का दावा करने वाले नेताओं का यह कर्तव्य बनता है कि वे इस मूर्ति को संरक्षित कराने में भूमिका निभाएं।

वहीं, हिंदू पक्ष मूर्ति को शिवलिंग मानकर उसी स्थान पर मंदिर निर्माण की दिशा में कार्य कर रहा है।

अब जरूरत है निष्पक्ष जांच की
दोनों धार्मिक समुदायों के दावों के बीच अब यह जरूरी हो गया है कि पुरातत्व विभाग इस मूर्ति का वैज्ञानिक व ऐतिहासिक परीक्षण कर यह स्पष्ट करे कि यह मूर्ति वास्तव में किस कालखंड और संस्कृति से जुड़ी है। इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे बिना सच्चाई सामने लाई जा सकेगी।

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