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चंद्रशेखर ने रजनीश गंगवार का समर्थन किया, शिक्षा पर FIR को बताया तानाशाही

INDC Network : लखनऊ, उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में कांवड़ यात्रा को लेकर एक शिक्षक द्वारा छात्रों को प्रेरित करने वाली कविता पढ़ने पर दर्ज हुई एफआईआर अब व्यापक राजनीतिक बहस का विषय बन गई है। एमजीएम इंटर कॉलेज में हिंदी अध्यापक रजनीश गंगवार द्वारा “ज्ञान का दीप जलाओ, कांवड़ से एसपी-डीएम नहीं बनते” जैसी पंक्तियाँ पढ़ने के बाद हिन्दू संगठनों ने धार्मिक भावनाएं आहत होने की बात कहकर उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। इस पर पुलिस ने BNS की धारा 353(2) के तहत केस दर्ज किया।

इस पूरे मामले में अब आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद भी रजनीश गंगवार के समर्थन में उतर आए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर स्पष्ट शब्दों में योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा:

“उत्तर प्रदेश के तथाकथित रामराज्य में अब शिक्षा के पक्ष में बोलना भी अपराध बना दिया गया है। अगर एक शिक्षक यह कहे कि ‘ज्ञान का दीप जलाओ’ और ‘कांवड़ से एसपी-डीएम नहीं बनते’, तो उस पर मुख्यमंत्री योगी जी की पुलिस FIR दर्ज कर देती है।”

चंद्रशेखर ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51(A)(ज) हर नागरिक से वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद तथा सुधार की भावना का विकास करने की अपेक्षा करता है। उन्होंने चेताया कि धर्म की आड़ में शिक्षा, विवेक, संविधान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है।

चंद्रशेखर ने अपनी पोस्ट में आगे लिखा:

“समाज को शिक्षित करना अपराध नहीं, बल्कि सबसे बड़ा ‘शिक्षक धर्म’ है। भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी तर्कवादी, विज्ञानवादी शिक्षक रजनीश गंगवार के साथ खड़ी है और उत्तर प्रदेश सरकार से यह मुकदमा तुरंत वापस लेने की मांग करती है। देश संविधान से चलेगा, तानाशाही के डर से नहीं।”

इससे पहले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी गंगवार के पक्ष में बयान दे चुके हैं। उन्होंने कहा था कि “क्या यही भाजपा के अमृतकाल का संदेश है कि एक शिक्षक को प्रेरणादायक बात कहने पर सजा दी जा रही है?”

शिक्षक रजनीश गंगवार का कहना है कि उनका उद्देश्य किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना नहीं था। वे बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित कर रहे थे, क्योंकि सावन के महीने में कई छात्र कांवड़ यात्रा के कारण स्कूल नहीं आ रहे थे। कविता में समाज को नशे से दूर रहने और शिक्षित बनने की बात कही गई थी।

इस पूरे विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या आज के दौर में एक शिक्षक द्वारा की गई प्रेरणादायक बातें भी असहिष्णुता की भेंट चढ़ जाएंगी? क्या भारत में संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब राजनीतिक और धार्मिक भावनाओं के बीच दबाई जा रही है?

जहां एक ओर शिक्षक समाज, विपक्षी दल और प्रगतिशील संगठन रजनीश गंगवार के पक्ष में खुलकर सामने आ रहे हैं, वहीं प्रदेश सरकार और प्रशासन अभी इस मुद्दे पर मौन हैं। हालांकि पुलिस जांच की बात कर रही है, लेकिन एफआईआर दर्ज होने के बाद शिक्षक की सुरक्षा और अधिकारों को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

अब देखना होगा कि योगी सरकार इस विवादित एफआईआर को वापस लेती है या इसे आगे बढ़ाकर एक और वैचारिक टकराव को जन्म देती है।

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