INDC Network : बलरामपुर, उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में शिक्षा विभाग द्वारा किए गए स्कूल विलय के एक निर्णय ने कई मासूम बच्चों को उनके मूल अधिकार, यानी शिक्षा से दूर कर दिया है। श्रीदत्तगंज शिक्षा क्षेत्र के गौर रमवापुर गांव में स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय का हाल ही में पास के ही लक्खापुरवा स्कूल में विलय कर दिया गया। कागजों पर भले ही यह कदम “सुव्यवस्थित एकीकरण” के रूप में सही लगे, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है।
गौर रमवापुर से लक्खापुरवा स्थित स्कूल की दूरी मात्र डेढ़ किलोमीटर है, लेकिन यह रास्ता पूरी तरह सुनसान है, जहां झाड़ियाँ, कीचड़ और छुट्टे जानवर बच्चों को डराने के लिए काफी हैं। परिणामस्वरूप, विद्यालय में नामांकित 27 बच्चों में से अधिकांश अब स्कूल जाना बंद कर चुके हैं।
कक्षा 8 की छात्रा काजल की मां गीता देवी बताती हैं कि उनकी बेटी पढ़ाई में होशियार थी लेकिन अब डर के कारण घर पर बैठी है। गीता कहती हैं, “रोज डरते हुए बेटी को स्कूल भेजना मुमकिन नहीं, रास्ता सुनसान और खतरनाक है।” इसी प्रकार, रामलाल ने अपनी बेटी वंदना को निजी स्कूल में दाखिला दिलाया क्योंकि वह रोज़ डर के मारे रोती थी।
गांव के इमरान खान ने बताया कि वे विभाग से बार-बार अपील कर रहे हैं कि इस निर्णय पर पुनर्विचार किया जाए, क्योंकि बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा दोनों दांव पर लगी हैं। शिक्षक मिथलेश वर्मा, जो पहले गौर रमवापुर स्कूल में तैनात थे, बताते हैं कि “अब केवल 7-8 बच्चे ही लक्खापुरवा के स्कूल में आ रहे हैं, बाकी बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं।”
दूसरी ओर, शिक्षा विभाग की ओर से खंड शिक्षा अधिकारी रमेश चंद्र मौर्य ने सफाई दी है कि “विद्यालयों के विलय में पूरी तरह मानकों का पालन किया गया है। जूनियर हाईस्कूल के लिए तीन किलोमीटर तक की दूरी मान्य है, जबकि वर्तमान में यह केवल डेढ़ किलोमीटर है।”
हालांकि यह तर्क तकनीकी रूप से सही हो सकता है, लेकिन व्यवहारिक रूप से बच्चों की सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और पढ़ाई पर इसके गंभीर दुष्प्रभाव स्पष्ट रूप से सामने आ चुके हैं।
स्थिति यह है कि अभिभावकों में असंतोष गहरा होता जा रहा है। कई बच्चों का भविष्य अधर में है। अगर समय रहते प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया तो यह निर्णय कई परिवारों की शिक्षा व्यवस्था को झटका दे सकता है।