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हैलमेट नहीं, पुलिसिया डंडे से गई एक 14 वर्षीय मासूम की जान: सांसद देवेश शाक्य ने परिवार से मुलाकात की

INDC Network : एटा, उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश के एटा जिले में एक 14 वर्षीय किशोर की कथित रूप से पुलिस हिरासत में मौत ने राज्य में कानून व्यवस्था और मानवाधिकारों की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पीड़ित परिवार न्याय की मांग कर रहा है जबकि पुलिस अपने बचाव में आत्महत्या की थ्योरी प्रस्तुत कर रही है। पांच पुलिसकर्मी लाइनहाजिर किए गए हैं, परंतु न्याय की मांग थमने का नाम नहीं ले रही।


थाना निधौली कला क्षेत्र के ग्राम चंद्रभानपुर (खरेटी) में रहने वाला 14 वर्षीय बालक सत्यवीर लोधी पुलिस की बेरहमी और क्रूरता का शिकार बन गया। आरोप है कि पुलिस ने उसे थाने बुलाकर इतनी बुरी तरह से पीटा कि कुछ ही घंटों बाद उसकी मौत हो गई। यह घटना सिर्फ एक मासूम की मौत नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की पुलिस व्यवस्था और बाल सुरक्षा कानूनों की पोल खोलने वाली एक भयावह मिसाल बन गई है।

घटना का क्रमवार विवरण

  • शनिवार: पुलिस ने सत्यवीर को थाने बुलाया था, जबकि उसका नाम किसी FIR में नहीं था।
  • परिजनों का आरोप: पुलिस ने 50,000 रुपये की रंगदारी मांगी और इलाज न कराकर घायल अवस्था में छोड़ा।
  • रविवार सुबह: सत्यवीर का शव गांव के पास मिला। शरीर पर गंभीर चोटों के निशान थे।
  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट: अभी सार्वजनिक नहीं की गई, लेकिन सूत्रों का दावा है कि सिर और पीठ पर गंभीर चोटें थीं।

पुलिस की सफाई बनाम परिजन का आरोप

पुलिस का कहना है कि सत्यवीर ने पूछताछ के बाद आत्महत्या की है, लेकिन परिवार इस दावे को सिरे से खारिज कर रहा है। परिवार का आरोप है कि:

  • पुलिस ने बच्चे को गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया।
  • थाने में बेरहमी से मारा गया।
  • इलाज कराने के बजाय उसे गांव के बाहर फेंक दिया गया।

प्रशासनिक कार्रवाई

  • पांच पुलिसकर्मी लाइनहाजिर किए गए हैं, जिनमें एक उपनिरीक्षक और चार कांस्टेबल शामिल हैं।
  • CCTV फुटेज की जांच की जा रही है।
  • पोस्टमार्टम और मेडिकल जांच के आदेश दिए गए हैं।
  • जिला प्रशासन ने मामले की उच्च स्तरीय जांच का आश्वासन दिया है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

एटा सांसद देवेश शाक्य ने परिवार से मिलकर शोक संवेदना व्यक्त की और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया।
उन्होंने लिखा:

“मैंने परिवार से मिलकर न्याय की मांग की है। दोषियों को सज़ा दिलाने के लिए उच्च स्तरीय जांच सुनिश्चित की जाएगी।”

मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस घटना की निंदा करते हुए कहा कि यह बाल अधिकारों और संविधान दोनों का सीधा उल्लंघन है।

“अगर थाने में एक 14 साल का लड़का भी सुरक्षित नहीं, तो फिर लोकतंत्र की क्या बुनियाद बची?”

कानूनी सवाल और गहरी चिंताएं

  • क्या पुलिस को बिना FIR के किसी नाबालिग को हिरासत में लेने का अधिकार है?
  • क्या बाल अधिकार आयोग को समय पर सूचित किया गया था?
  • क्या ये मामला पॉक्सो एक्ट, बाल न्याय अधिनियम, और मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में नहीं आता?

डबल इंजन सरकार की जवाबदेही कहां है?

सत्यवीर की मृत्यु केवल एक पुलिसिया बर्बरता नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की असंवेदनशीलता का प्रतीक बन गई है।
अब सवाल यह है:

  • क्या यूपी की पुलिस केवल दबंगों के लिए है और गरीबों के बच्चों के लिए डंडा?
  • क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस घटना को व्यक्तिगत रूप से गंभीरता से लेंगे?

सरकार को जवाब देना होगा कि एक मासूम की मौत के लिए कौन ज़िम्मेदार है।
और सबसे अहम — क्या भविष्य में ऐसा किसी और बच्चे के साथ नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है?

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