INDC Network : फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश : फर्रुखाबाद के फतेहगढ़ में डॉ. भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा को अराजकतत्वों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। प्रतिमा की नाक और बाएं हाथ का अंगूठा तोड़ दिया गया। प्रशासन ने तुरंत मौके पर पहुंचकर प्रतिमा को दुरुस्त कराया। स्थानीय संगठनों ने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। यह घटना समाज में फैलती असहिष्णुता और संकीर्ण सोच की दुखद तस्वीर पेश करती है।
यह घटना फतेहगढ़ कोतवाली क्षेत्र के जेएनवी रोड तिराहा की है, जहाँ शुक्रवार सुबह स्थानीय लोगों ने देखा कि डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा क्षतिग्रस्त है। अराजक तत्वों ने प्रतिमा की नाक और बाएं हाथ का अंगूठा तोड़ दिया था।
सूचना मिलते ही पुलिस और प्रशासन हरकत में आया। एसडीएम सदर रजनीकांत पांडे, सीओ सिटी ऐश्वर्या उपाध्याय, और फतेहगढ़ कोतवाली प्रभारी रणविजय सिंह भारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। अधिकारियों ने तत्काल प्रतिमा को सही कराने के निर्देश दिए, जिसके बाद कुछ ही घंटों में उसे फिर से दुरुस्त कर दिया गया।

सवाल बड़ा है — आखिर ऐसा होता क्यों है?
क्यों आज भी कुछ लोगों के मन में यह गलतफहमी है कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर सिर्फ दलितों के नेता थे? जबकि सच्चाई यह है कि बाबा साहब ने संविधान पूरे भारतवर्ष के हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया था — चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या वर्ग से जुड़ा हो। लेकिन जानकारी की कमी और सोच की तंगदिली ही वह कारण है, जिसकी वजह से आज भी कुछ लोग नफरत और अंधकार में जी रहे हैं। इसी मानसिकता की एक झलक फर्रुखाबाद से आई है, जहाँ डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया गया।
घटना की जानकारी फैलते ही आज़ाद समाज पार्टी, भीम आर्मी, बसपा और अन्य अंबेडकरवादी संगठनों के कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे। उन्होंने प्रशासन से दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की और सिटी सीओ ऐश्वर्या उपाध्याय को ज्ञापन सौंपा।
फतेहगढ़ कोतवाली प्रभारी रणविजय सिंह ने बताया कि, “प्रतिमा थोड़ी क्षतिग्रस्त थी, जिसे तुरंत सही कर दिया गया है। इस मामले में अम्बेडकरवादियों की ओर से तहरीर दी गई है। जांच जारी है और दोषियों की पहचान की जा रही है।
इस घटना ने एक बार फिर समाज में बढ़ती असहिष्णुता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बाबा साहब आंबेडकर ने संविधान के माध्यम से हर व्यक्ति को समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का अधिकार दिया था। उनकी मूर्ति पर हमला केवल एक प्रतिमा पर नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला माना जा रहा है। ऐसी घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि समाज के कुछ हिस्से अब भी उस सोच से बाहर नहीं निकल पाए हैं जो भेदभाव और घृणा को बढ़ावा देती है।
फर्रुखाबाद की यह घटना केवल कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सोच और सामाजिक चेतना की परीक्षा है।
बाबा साहब के बताए रास्ते पर चलना तभी संभव है जब समाज नफरत नहीं, समानता और सम्मान को प्राथमिकता दे।
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