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फर्रुखाबाद में सांसद पर ज़मीन कब्जे का आरोप, भगार नाले की खुदाई से विवाद गहराया

INDC Network : फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जनपद में स्थित इटावा-बरेली हाईवे के किनारे चल रहा भगार नाले का विवाद अब एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष का रूप ले चुका है। यह विवाद उस समय और तेज़ हो गया जब स्थानीय व्यवसायी विक्रांत सिंह राजपूत ने सांसद मुकेश राजपूत पर गंभीर आरोप लगाए कि वे उनकी निजी ज़मीन पर कब्जा करने का प्रयास कर रहे हैं।

विवादित स्थान फर्रुखाबाद रेलवे स्टेशन से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ एक बहता हुआ नाला है, जिसे स्थानीय लोग ‘भगार नाला’ कहते हैं। यह एक कृत्रिम नहर है जिसका प्रयोग किसानों की सिंचाई के लिए किया जाता है। इस नाले से सिंचाई हेतु नदी का पानी छोड़ा जाता है। लेकिन अब इस पर जमीन कब्जे को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।

पीड़ित का आरोप: सांसद करा रहे हैं अवैध खुदाई
पीड़ित विक्रांत सिंह राजपूत का कहना है कि उनकी ज़मीन पर अवैध रूप से खुदाई कराई जा रही है। वे बताते हैं कि जिस स्थान पर खुदाई हो रही है, वह उनकी निजी भूमि है और उसे नाले की जमीन कहकर जबरन कब्जाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने दावा किया कि जहां खुदाई होनी चाहिए थी, वह जगह खुद सांसद मुकेश राजपूत की जमीन है, लेकिन वहां खुदाई न कराके यह सब उनकी जमीन पर किया जा रहा है।

विक्रांत सिंह ने बताया कि उन्होंने इस संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट से भी आदेश प्राप्त किया है, जिसमें स्पष्ट रूप से इस कार्य को अवैध बताया गया है। उन्होंने वह आदेश मीडिया के सामने प्रस्तुत भी किया। इन कागजों का हिंदी रूपांतरण निम्निलिखित है :

” न्यायालय संख्या 49
प्रकरण: जनहित याचिका (पीआईएल) संख्या – 527/2025
याचिकाकर्ता: मधुबाला सिंह
प्रतिवादी: उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
याचिकाकर्ता के वकील: लवकुश कुमार भट्ट
प्रतिवादी के वकील: सी.एस.सी., हरि नारायण सिंह

माननीय जे.जे. मुनीर, जे.

प्रथम दृष्टया, आदान-प्रदान किए गए हलफनामों की स्थिति और कलेक्टर, फर्रुखाबाद द्वारा अपने व्यक्तिगत हलफनामे में अपनाए गए रुख के आधार पर, हमारे दिनांक 24.04.2025 के आदेश में पाया गया कि गाटा संख्या 915 समतल भूमि है, लेकिन इसे नाले के रूप में दर्ज किया गया है। यह भी कहा गया है कि इस भूमि के किसी भी भाग पर कोई अतिक्रमण नहीं है। अतः, प्रथम दृष्टया, निष्कर्ष यह है कि नाले के लिए निर्धारित भूमि समतल भूमि है, जहाँ कोई नाला नहीं है।

कलेक्टर के व्यक्तिगत हलफनामे के पैरा संख्या 11 में कहा गया है कि याची के गाटा संख्या 916, 917 और 918 राजस्व मानचित्र में आकार में बड़े दिखाई देते हैं। हालाँकि, याची के कब्जे का क्षेत्रफल खतौनी में दर्ज क्षेत्रफल से मेल खाता है। इसलिए, ऐसा कोई मामला नहीं है कि याची के पास खतौनी में दर्ज क्षेत्रफल से बड़ा कोई क्षेत्रफल हो। पैरा संख्या 13 में, कलेक्टर द्वारा कहा गया है कि राजस्व मानचित्र में गाटा संख्या 915, 916, 917 और 918 अपने-अपने दर्ज क्षेत्रफल से पूरी तरह मेल नहीं खाते हैं, इसलिए राजस्व मानचित्र में सुधार के लिए उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 32 के अंतर्गत अलग से कार्यवाही की जा रही है।

कलेक्टर के रुख का यह भाग प्रथम दृष्टया दुर्भावनापूर्ण है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिवादियों का प्रयास याचिकाकर्ता को भूखंड संख्या 915 में मौजूद नहीं अतिक्रमणों को हटाने के अपने दावे को वापस लेने के लिए धमकाने का है, और उससे भी बढ़कर, निर्माण कार्य से बचना है या, जैसा कि याचिकाकर्ता का कहना है, भूखंड संख्या 915 में नाले का जीर्णोद्धार करना है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राधिकारी याचिकाकर्ता की भूमि के कुछ हिस्से पर कब्जा करने की कोशिश करके उसे इस जनहित याचिका को आगे बढ़ाने से रोकना चाहते हैं, जिसके बारे में वे स्वयं एक ही बार में कहते हैं कि क्षेत्रफल खतौनी में दर्ज क्षेत्रफल के बराबर है। याचिकाकर्ता ने प्रत्युत्तर हलफनामे में, जिसे पैराग्राफ संख्या 6 में कलेक्टर के व्यक्तिगत हलफनामे के उत्तर में प्रति-हलफनामे के रूप में प्रस्तुत किया गया है, कहा है कि राजस्व टीम ने प्रतिवादी संख्या 5 के कहने पर, याचिकाकर्ता की भूमि का सीमांकन कर दिया है, जो गाटा संख्या 915 का हिस्सा नहीं है और याचिकाकर्ता की भूमि पर नाले का निर्माण करने जा रही है।

इन परिस्थितियों में, यह उचित होगा कि कलेक्टर, फर्रुखाबाद द्वारा ग्राम ढिलावल (पहाड़ा), तहसील एवं जिला फर्रुखाबाद के भूखंड संख्या 915 में विद्यमान मानचित्र के अनुसार, आवश्यक मशीनरी का उपयोग करते हुए, चार सप्ताह के भीतर नाले का निर्माण कराया जाए अथवा कलेक्टर द्वारा स्वयं अपने हलफनामे द्वारा यह कारण दर्शाया जाए कि इस अंतरिम आदेश को क्यों न निरस्त कर दिया जाए। यह भी आदेश दिया जाता है कि इस स्तर पर मानचित्र में संशोधन की कार्यवाही जारी नहीं रखी जाएगी।

04.08.2025 तक स्थगित।

दोपहर के अवकाश के बाद प्रथम मामले के रूप में, आज दोपहर 2:00 बजे वाद सूची में लिया जाएगा। रजिस्ट्रार (अनुपालन) को निर्देश दिया जाता है कि वे सोमवार अर्थात् 7 जुलाई, 2025 तक विद्वान मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, फर्रुखाबाद के माध्यम से कलेक्टर, फर्रुखाबाद को यह आदेश संप्रेषित करें।

आदेश दिनांक: 4.7.2025″

सांसद की पत्नी खुद मौजूद, लेकिन मीडिया से बात करने से इनकार
विक्रांत सिंह का आरोप है कि खुद सांसद की पत्नी सौभाग्यवती और उनके समर्थक इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं। वह खुदाई स्थल पर जेसीबी की निगरानी में बैठी थीं। जब INDC Network ने उनसे पक्ष जानने की कोशिश की तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और बातचीत से इनकार कर दिया।

भगार पर मौजूद भाजपा सांसद मुकेश राजपूत पक्ष

किसान यूनियन ने दिया समर्थन
भारतीय किसान यूनियन ने विक्रांत सिंह का समर्थन किया है। यूनियन नेताओं का कहना है कि विक्रांत एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने कोई गलत कार्य नहीं किया है। वे रानी अवंती बाई लोधी की एक 10 से 12 फीट ऊँची प्रतिमा भी स्थापित करना चाहते हैं, जो कि लगभग 16 लाख रुपये की पीतल निर्मित मूर्ति है। किसान यूनियन ने कहा कि यह एक सामाजिक पहल है, जिसे सांसद पक्ष रोकने की कोशिश कर रहा है।

यहाँ नीचे वीडियो में पूरे मामले को स्वयं विक्रांत सिंह राजपूत एवं उनकी पत्नी ने बताया है :

व्यवसाय को पहुंचा नुकसान, मिल रही जान से मारने की धमकियां
विक्रांत सिंह ने यह भी बताया कि उनके व्यवसाय—गिट्टी,मौरंग, और निर्माण सामग्री—को बंद कराने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। उन्हें कई बार धमकियां भी मिल चुकी हैं। उन्होंने यह मामला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित कई सांसदों और विधायकों के संज्ञान में भी लाया, लेकिन अब तक कोई राहत नहीं मिली।

हाईकोर्ट का आदेश: खुदाई अवैध
विक्रांत सिंह ने जो दस्तावेज़ पेश किए, उनके अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उक्त भूमि पर की जा रही खुदाई को अवैध ठहराया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कार्य सार्वजनिक हित में है तो भी उसे कानून और सीमांकन के अनुरूप ही किया जाना चाहिए।

हाईवे के दूसरी और बंद पड़ा हुआ नाला

फर्रुखाबाद का यह विवाद केवल जमीन या नाले का नहीं रह गया है, यह अब कानून, राजनीतिक प्रभाव और आमजन की आवाज़ से जुड़ गया है। एक ओर हाईकोर्ट का आदेश और स्थानीयों की आपत्तियाँ हैं, तो दूसरी ओर सत्ताधारी पक्ष का मौन है। सवाल यह है कि क्या इस मामले में निष्पक्ष जांच होगी? क्या पीड़ित को न्याय मिलेगा?

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