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कांवड़ यात्रा के चलते मेरठ में 16 से 24 जुलाई तक स्कूल बंद, शिक्षा नहीं धर्म प्राथमिकता

INDC Network : मेरठ, उत्तर प्रदेश : धर्म के नाम पर शिक्षा और यातायात व्यवस्था कुर्बान

कांवड़ यात्रा के नाम पर सरकारी प्राथमिकता का पलड़ा धर्म की ओर, शिक्षा और जनता को दरकिनार

उत्तर प्रदेश के मेरठ में कांवड़ यात्रा के चलते 16 से 24 जुलाई तक शिक्षा व्यवस्था ठप कर दी गई है। 23 जुलाई तक सभी स्कूलों को बंद करने का आदेश जारी कर दिया गया है। वहीं, महानगर की 51 इलेक्ट्रिक और 8 वोल्वो बसों को भी सड़क से हटा लिया गया है। दिल्ली-देहरादून हाईवे पर वन-वे व्यवस्था लागू कर दी गई है, जिससे 10 मिनट की दूरी तय करने में लोगों को एक घंटे तक लग रहा है।

प्रशासन का कहना है कि यह सब कांवड़ियों की सुरक्षा के लिए किया गया है, जबकि स्थानीय लोग इस निर्णय पर नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं। उनका कहना है कि अभी कांवड़ियों की संख्या बहुत कम है, फिर भी प्रशासन ने व्यवस्था पहले से ठप कर दी है।


शिक्षा पर ताला, धर्म को हरी झंडी

डॉ. वीके सिंह, जिलाधिकारी मेरठ ने 16 से 23 जुलाई तक सभी स्कूलों को बंद रखने का आदेश दिया है। यह निर्णय सुरक्षा और ट्रैफिक व्यवस्था के नाम पर लिया गया है, लेकिन इसका सबसे बड़ा असर उन बच्चों पर पड़ा है जो रोज़ स्कूल जाकर पढ़ाई करते हैं।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने की बात तो करती है, लेकिन कांवड़ यात्रा जैसे धार्मिक आयोजनों के समय शिक्षा को एक झटके में दरकिनार कर दिया जाता है। इस बार न केवल मेरठ, बल्कि मुजफ्फरनगर में भी स्कूल बंद कर दिए गए हैं।


बस सेवाएं बंद, आमजन की मुसीबतें बढ़ीं

मेरठ शहर की इलेक्ट्रिक और वोल्वो बसों को सोमवार सुबह से लोहियानगर बस अड्डे पर खड़ा कर दिया गया है। इन बसों से रोजाना सैकड़ों लोग अपने कार्यस्थल, स्कूल, कॉलेज और अस्पताल जाते थे। अब लोगों को ई-रिक्शा और थ्री-व्हीलर में महंगे किराए देकर सफर करना पड़ रहा है।

सरकार ने इन सेवाओं को बंद कर लोगों की दैनिक जिंदगी को अस्त-व्यस्त कर दिया है। सिटी बस सेवा से मवाना, परीक्षितगढ़, शाहजहांपुर जैसे इलाकों के लोग भी प्रभावित हुए हैं।


वन-वे हाईवे, घंटों का जाम, अधिकारी खुद फंसे

दिल्ली-देहरादून हाईवे को वन-वे किए जाने के बाद से रोजाना लंबा जाम लग रहा है। मोदीपुरम से लेकर परतापुर तक हाईवे पर वाहन रेंगते नजर आ रहे हैं। पहले ही दिन चार किलोमीटर लंबा जाम लगा, जिसमें एसपी ट्रैफिक राघवेंद्र मिश्रा भी खुद फंस गए।

शहर की सड़कें बल्लियों से बंद कर दी गई हैं। एक तरफ सिर्फ कांवड़ियों के लिए रास्ता खोला गया है, दूसरी ओर जनता और निजी वाहनों को मार्ग नहीं मिल पा रहा है।


प्रशासन की समयपूर्व सख्ती, जनता में रोष

स्थानीय लोगों का कहना है कि कांवड़ियों की संख्या अभी बहुत कम है, फिर भी हाईवे वन-वे कर दिया गया। जबकि यह निर्णय शिवरात्रि के एक सप्ताह पहले लिया जाना चाहिए था। सरकार ने समय से पहले स्कूल और बसें बंद कर दीं, जिससे जनता को कई गुना परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

शहर के प्रमुख मार्गों पर प्रशासन ने बलपूर्वक वन-वे व्यवस्था लागू की है, जबकि आम जनता के पास चलने के लिए कोई वैकल्पिक मार्ग भी नहीं छोड़ा गया है। कुछ वाहनों को पास दिए गए हैं, लेकिन उनमें भी कांवड़ मार्ग का उपयोग निषिद्ध है।


धार्मिक आयोजन प्राथमिकता, शिक्षा और नागरिक सुविधा हाशिए पर

यह स्थिति यह साफ दिखाती है कि सरकार की प्राथमिकता शिक्षा नहीं, बल्कि धार्मिक आयोजनों की भीड़ को नियंत्रित करना है। शिक्षा नीति को दरकिनार कर धार्मिक आयोजनों के नाम पर स्कूल और सार्वजनिक सेवाओं को रोक देना सवाल खड़ा करता है कि क्या यह लोकतंत्र में उचित है?

ऐसे निर्णय देश के भविष्य — यानी छात्रों — की पढ़ाई पर सीधा असर डालते हैं। धर्म आधारित निर्णयों को अगर इस तरह प्रशासनिक ताकत से लागू किया जाएगा, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान की भावना के खिलाफ माना जाएगा।


कांवड़ यात्रा जैसी धार्मिक परंपराओं को सम्मान देना उचित है, लेकिन उसके लिए शिक्षा व्यवस्था को ठप कर देना सरकार की प्राथमिकता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है। अगर शिक्षा को वरीयता नहीं दी गई, तो यह समाज और भविष्य दोनों के लिए नुकसानदायक सिद्ध होगा।

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