INDC Network : लखनऊ, उत्तर प्रदेश : यूपी सरकार का स्कूल विलय पर नया फैसला: विरोध के बाद नियमों में बदलाव
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में चल रहे स्कूल विलय अभियान को लेकर बड़ा संशोधन करते हुए स्पष्ट किया है कि अब किसी भी ऐसे स्कूल को मर्ज नहीं किया जाएगा जहां छात्रों की संख्या 50 से अधिक है या वह किसी अन्य स्कूल से एक किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर स्थित है। यह फैसला शिक्षकों, अभिभावकों, राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के विरोध के बाद लिया गया है।
बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री संदीप सिंह ने आदेश जारी करते हुए कहा कि इस फैसले से छात्रों को मूलभूत सुविधाएं मिलेंगी और उन्हें दूरदराज के स्कूलों में जाने से राहत मिलेगी। पहले राज्य सरकार की योजना थी कि कम छात्रों वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को आपस में जोड़ा जाए ताकि संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सके।
क्यों हुआ स्कूल विलय का विरोध?
राज्य के विभिन्न जिलों में शिक्षकों और अभिभावकों ने विरोध जताते हुए कहा था कि इससे बच्चों को दूर के स्कूलों में भेजना पड़ेगा, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होगी और सुरक्षा पर भी असर पड़ेगा। विरोध के बाद सरकार ने समीक्षा कर यह तय किया कि 50 से अधिक छात्र संख्या वाले या एक किलोमीटर से अधिक दूर स्थित स्कूलों को मर्ज नहीं किया जाएगा।
अन्य राज्यों में भी हो चुका है स्कूल विलय
राज्य सरकार का दावा है कि यूपी कोई पहला राज्य नहीं है जिसने स्कूल विलय की नीति अपनाई है। इससे पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी स्कूल विलय की प्रक्रिया अपनाई गई है।
- राजस्थान में 2014 में 20,000 स्कूलों का विलय
- एमपी में 2018 में 36,000 में से 16,000 स्कूल मर्ज
- ओडिशा में 2018-19 में 1,800 स्कूलों का विलय
- हिमाचल में 2022-2024 तक चरणबद्ध रूप से विलय
नया आदेश कैसे करेगा असर?
इस संशोधन आदेश से यूपी के हजारों स्कूलों को राहत मिलेगी, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां विद्यार्थियों को मर्ज स्कूल तक जाने में परेशानी हो रही थी। सरकार का कहना है कि बच्चों को सुरक्षित और समृद्ध शैक्षणिक माहौल देने के लिए ही यह कदम उठाया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने छात्रों और अभिभावकों की आपत्तियों के बाद स्कूलों के विलय को लेकर नया फैसला लिया है। अब 50 से अधिक छात्र संख्या वाले और एक किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित स्कूलों का विलय नहीं किया जाएगा। इस कदम का उद्देश्य छात्रों की सुविधा और शिक्षा की गुणवत्ता को प्राथमिकता देना है। यह नीति देश के अन्य राज्यों में पहले से लागू है और यूपी सरकार भी अब उसी राह पर चलते हुए स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संशोधन कर रही है।